रिकार्डिंग रूम छोटा है. कुछ महिलाएं इंतज़ार में खड़ी हैं. उन्हें अपनी कहानियां रिकॉर्ड करानी हैं. उन्हें बताया गया कि यह उनके लिए मददगार साबित हो सकती है. कोई उनकी कहानियों को पढ़ या सुन कर उन्हें बचाने के लिए आगे आ सकता है. उनके लिए यह उम्मीद की हल्की किरण जैसी थी.
उम्र के तीसरे दशक के आख़िर में चल रही एक महिला इन लड़कियों का परिचय कराती है. ये लड़कियां बिहार के कुछ इलाक़ों की शादियों या पार्टियों में बुलाए जाने वाले ख़ास तरह के ऑर्केस्ट्रा बैंड में नाचने-गाने का काम करती हैं. लेकिन अपने फ़न के प्रदर्शन के दौरान अक्सर उनके साथ ज़्यादतियां होती हैं.
शादियों पर होने वाले इस जमावड़े में की जाने वाली फ़ायरिंग तो आम है. अक्सर ऐसी फ़ायरिंग में इन लड़कियों के मारे जाने की ख़बरें आती रहती हैं. 24 जून को नालंदा में ऐसे ही एक शादी समारोह में हुई फ़ायरिंग में स्वाति नाम की लड़की की मौत हो गई. गोली उसके सिर में घुस गई. एक पुरुष डांसर को भी गोली लगी.
रेखा राष्ट्रीय कलाकार महासंघ की अध्यक्ष हैं. ऑर्केस्ट्रा में काम करने वाले ऐसे ही पुरुष और महिला कलाकारों के हक़ की लड़ाई के लिए 2018 में उन्होंने यह संगठन बनाया था.
इन्हीं महिलाओं में से एक अपनी आपबीती सुनाते हुए सिसक पड़ती हैं. आंसुओं से उनका चेहरा भीग गया है और मस्कारा लुढ़क कर गालों तक उतर आया है. बालों में भूरा शेड है. नीले रंग का लाइक्रा का कुर्ता और सलमे-सितारे वाली सलवार पहनी इस महिला के हाथ में गोल्डन पर्स है.
आंखें बड़ी हैं और बाएं हाथ में तितली का टैटू बना है. नाम दिव्या है लेकिन यह असली नहीं है. महिला का कहना है उसे दिवंगत अभिनेत्रा दिव्या भारती बहुत अच्छी लगती थीं. वह उन्हीं की तरह बनना चाहती थीं. इसलिए अपना नाम दिव्या रख लिया है. लेकिन ज़िंदगी आसान नहीं है.
दिव्या प्रदर्शन के लिए घेर कर बनाई गई जगह या स्टेज पर डांस करती हैं. उन्हें शराब के नशे में घिरे पुरुषों के बीच नाचना पड़ता है. ये लोग इन महिला डांसरों की छाती पकड़ लेते हैं. उन पर पत्थर फेंकते हैं और यहां तक कि उन पर बंदूक़ भी तान देते हैं. दिव्या ऑर्केस्ट्रा कहे जाने वाले ऐसे ही जमावड़े का हिस्सा हैं.
पति की प्रताड़ना से स्टेज तक का सफ़र
दिव्या बिहार के पूर्णिया में पैदा हुई थीं. वह जब किशोरी थीं, तो उनका परिवार काम की तलाश में पंजाब चला गया था. 13 साल की उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई. इसके बाद वह पति के साथ रहने चली आईं.
पति ड्राइवर था, जो अक्सर मार-पीट और गाली-गलौज करता था. एक दिन पति ने जब घर से निकाल दिया तो बेटियों को लेकर उन्होंने पटना के लिए ट्रेन पकड़ी. एक ऑनलाइन मुलाक़ात में एक शख्स ने उन्हें एक ‘शूटिंग’ का काम दिलाने का भरोसा दिलाया था.
उसने दिव्या को अपनी गर्लफ्रेंड के साथ मीठापुर के एक फ़्लैट में रखवा दिया और कहा कि वह स्टेज शो में डांस करके पैसा कमा सकती हैं. दिव्या कहती हैं, “17 साल तक मैं पति के हाथों प्रताड़ित होती रही.”
आख़िरकार, दिव्या ने इस साल फरवरी में ‘डांसलाइन’ ज्वाइन कर ली. उनकी उम्र 28 साल है और वह जानती हैं कि यह वह जगह नहीं है, जहां पहुंचने की उन्होंने तमन्ना की थी. लेकिन महामारी और उनकी अपनी परिस्थितियों ने उन्हें मजबूर कर दिया.
बिहार और यूपी के शादी समारोहों और यहां तक की बर्थडे पार्टियों में भी कम या छोटे कपड़े पहन कर महिला डांसरों का डांस करना आम है. लेकिन पिछले कुछ सालों में स्टेज पर इन महिलाओं के साथ होने वाली ज़्यादतियां बढ़ गई हैं. डांस देखने आए लोग इन्हें डांस फ़्लोर पर ज़बरदस्ती दबोचने लगते हैं और कई बार तो रेप भी कर देते हैं.
पिंजरे में डांस और गिद्धों का जमावड़ा
इन लड़कियों को जिन पिंजरों में डांस कराया जाता है, वे एक किस्म के पहिये वाले ट्रॉलियां होती हैं. महिला डांसरों को लोग छू न सकें इसलिए यह इंतज़ाम किया जाता है. ऑर्केस्ट्रा बैंड के आयोजकों का कहना है कि यह इन महिलाओं की सुरक्षा के लिए है. लेकिन इस तरह के पिंजरों में डांस करना इन महिलाओं को अपनी प्राइवेसी में दख़ल लगता है. दिव्या कहती हैं, “आख़िर पिंजरा तो पिंजरा ही है.”
स्टेज तो कम से कम दिव्या को इस बात का थोड़ा अहसास कराता है कि वह जिस दुनिया में जाना चाहती थीं, उससे इसका थोड़ा ही सही कुछ न कुछ मेल तो है. लेकिन उनकी नज़र में पिंजरा तो पिंजरा ही है.
नीरज कहते हैं, “आप जानवरों से भी इस तरह का बर्ताव नहीं करते हैं. मैंने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा था. “
ग़रीबी की मार से बचने के लिए ‘डांसलाइन’ का रास्ता
आकांक्षा की बहन को एक रात ऐसे ही एक डांस प्रोग्राम में गोली लग गई. गोली ने उसके सिर को छेद दिया था लेकिन वह बच गई. अब वह ख़तरे से बाहर हैं. लेकिन इस घटना ने आकांक्षा को अंदर से हिला दिया है. ऑर्केस्ट्रा के मालिक मनीष ने कहा कि उन्होंने एफ़आईआर दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने केस रजिस्टर नहीं किया.
input – bbc