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बदलते दौर के साथ देश के किसान भी बदल रहे हैं. यहीं कारण है कि अब वे पारंपरिक फसलों की खेती त्याग कर औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं. इससे उनकी कमाई बढ़ रही है और मेहनत भी कम करना पड़ रहा है. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के किसान बड़ी संख्या में शतावरी, सफेद मूसली और गिलोय की खेती कर रहे हैं. इन औषधीय पौधों की बाजार में काफी मांग है.

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दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिले में फल व औषधीय पौधों की खेती का रकबा पांच हजार हेक्टेयर तक बढ़ चुका है. सरकार भी किसानों को इन पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है. राष्ट्रीय औषधीय पौध मिशन के तहत सरकार से किसानों को मदद भी दी जाती है.

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किसानों का कहना है कि कुछ किसान पहले से इन औषधीय पौधों की खेती कर रहे थे. लेकिन कोरोना काल में इन पौधों की तरफ किसानों का रुझान तेजी से बढ़ा है. फिलहाल खरीफ का सीजन चल रहा है लेकिन किसान खरीफ की पारंपरिक फसलों की बजाय औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं.

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कंपनियों से संपर्क कर खेती कर रहे किसान

किसानों ने दिल्ली और गाजियाबाद की कंपनियों से संपर्क कर पौध लगा रहे हैं. आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियां किसानों से उत्पादों का खरीद कर लेंगी. उन्हें मंडियों में उपज को लेकर भटकना नहीं पड़ेगा. साथ ही किसानों को उचित दाम भी मिल जाएगा.

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किसानों का कहना है कि जिले में शतावरी, सफेद मूसली, गिलोय और अश्वगंधा जैसे औषधीय पौधों की खेती हो रही है. किसानों का सबसे अधिक रुझान शतावरी की तरफ है. इसके पीछे का वजह बताते हुए किसान कहते हैं, शतावरी को नाशीजीव से कोई खतरा नहीं है. ऐसे में हमें कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा. इससे पैसे की बचत होगी.

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