भारतीय सेना का सैनिक सीमा पर मुस्तैदी से रक्षा करता है। उसके हौसलों को डगमगाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। वो कहते हैं कि कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। इसी बात को सच साबित किया भारतीय सैनिक अनिल धनखड़ ने। झुंझुनू चिड़ावा के सोलाना गांव के निवासी हवलदार अनिल धनखड़ ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फतेह करके साबित कर दिया.

कि भारत के लोग और भारतीय सेना के सैनिक हर जगह पहले नंबर पर है। अनिल धनखड़ की बात करें तो केवल 17 साल की उम्र में उन्होंने सेना को ज्वाइन कर लिया था। वही माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के दौरान बर्फीली हवाएं और खराब मौसम भी अनिल धनखड़ को उनके साथियों को हिला नहीं पाया और सभी साथियों ने मिलकर के माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहरा दिया।

अनिल धनखड़ व उनके साथियों की बात करें तो 25 मार्च 2021 को उन्होंने माउंट एवरेस्ट अभियान की शुरुआत की थी। जिसमें 7 लोगों को शामिल किया गया। इन 7 लोगों में 2 कमीशन अधिकारी, तीन हवलदार रैंक के सैनिक और दो माउंटेनियर इंस्ट्रक्टर शामिल किए गए। 2 अप्रैल को सभी लोग काठमांडू पहुंचे जिसके बाद 8 अप्रैल को बेस कैंप में पहुंचकर एक हफ्ते की ट्रेनिंग पूरी की। 21 तारीख को नेपाल की लुबचे चोटी जो 6119 मीटर ऊंची है। उसे फतह किया और इसके बाद शुरु कर दिया, अपना माउंट एवरेस्ट फतह करने का अभियान।

24 मई को अनिल और उनके साथी कैंप 2 में पहुंचे थे। वहां पहुंचकर उन लोगों ने देखा कि तेज बर्फीली हवाएं व तूफान से मौसम बड़ा खराब था। साथ ही बर्फबारी के कारण आगे का सफर तय कर पाना मुश्किल नजर आ रहा था। अनिल बताते हैं कि डेढ़ सौ से ज्यादा पर्वतारोही वापस चले गए वह लोग माउंट एवरेस्ट चढ़ने का सपना छोड़ अपने घर की ओर वापस चल दिए। तेज हवाओं और खराब मौसम की वजह से कई लोग हार मान गए लेकिन अनिल और उनके साथी हार नहीं माने। 6 दिन तक कैंप 2 में रुके रहे जब मौसम ठीक हुआ तो उन्होंने आगे का सफर तय करना शुरू किया। मन में एक ही विश्वास था कि अब न रुकना है न ही थकना है। अनिल बताते हैं कि वह लोग कैंप 2 से सीधा कैंप 4 में पहुंचे। कैंप 3 में अनिल उनके साथ ही नहीं रुके सीधा कैंप 4 में पहुंचे।

31 मई को कैंप 4 से सभी लोगों ने रात को एवरेस्ट फतेह करना शुरू किया और अनिल व उनके साथियों की मेहनत 1 जून सुबह 6:30 बजे रंग ले आई। 1 जून सुबह 6:30 बजे अनिल और उनके साथियों ने सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहरा दिया।

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