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बिहार सरकार के सामान्य (या सामाजिक क्षेत्र), राजस्व और पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम) से संबंधित सीएजी की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा में पेश की गयी। महालेखाकार के मुख्य कार्यालय सभागार में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी स्थिति एजी राम अवतार शर्मा ने स्पष्ट की।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा में एक प्रतिशत से कम लोगों को 100 दिनों का रोजगार दिया गया है। औसत 34 से 45 दिनों का रोजगार ही लोगों को दिया गया है। सरकार इसका कारण बताती है कि कृषि कार्य करने वाले मजदूरों से कम मजदूरी मनरेगा में मिलने के कारण लोग इसमें कम काम करना चाहते हैं। मनरेगा की ऑडिट जांच में यह बात सामने आयी है कि 42 लाख काम इसके अंतर्गत लिये गये थे, लेकिन लगभग 36 लाख (लगभग 65%) कार्य अधूरे पड़े हैं।

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देश में भूमिहीन दिहाड़ी मजदूरों की संख्या सर्वाधिक बिहार में है, जो कि लगभग 88.61 लाख है। मानव दिवस सृजन करने में बिहार का 21वां स्थान है। मनरेगा से निबंधित लोगों की संख्या आठ से दस प्रतिशत ही है। इसके तहत रोजगार मांगने के इच्छुक 90,161 लोगों में महज 3.34% का ही जॉब कार्ड बना है।
2014 से 2019 तक यानी पांच वर्षों में इसके तहत रोजगार देने के प्रतिशत में काफी गिरावट आई है, जो कि 14 से घटकर 2 प्रतिशत हो गया है। इसके अलावा मनरेगा में निबंधित दिव्यांगों की संख्या 9 से 14 प्रतिशत है तथा वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 5 से 9 प्रतिशत है।

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कई स्थानों पर कुछ भवनों का निर्माण बेवजह कराया गया,जबकि कई जगहों पर निजी घरों में भी मनरेगा के तहत काम करा लिये गये। मनरेगा में सिर्फ 25% मजदूरों का भुगतान ही आधार से जुड़े बैंक खातों में होता है, जबकि आधार जुड़े खातों की संख्या 84% है।

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