बोकारो की उसारी देवी बनीं आत्मनिर्भरता और परंपरा की प्रतीक

झारखंड के बोकारो जिले की उसारी देवी ने अपने बुढ़ापा यह दिखा दिया की आत्मनिर्भर बनने की कोई ऐज लिमिट नहीं होती है. उन्होंने एक तरह से सभी लोगो खास कर युवा के लिए एक मिसाल पेश की है. दादी ने कई लोगों को रोजगार भी दिया है. उसारी देवी की उम्र 70 वर्ष है. उसरा देवी बताती है की वे अपनी दादी से पारंपरिक झरगुंडा घास से झाड़ू बनाने की कला सीखी थी. उस वक्त यह झाड़ू काफी प्रसिद्द भी . आज तो नए ज़माने के झाड़ू चल गए है लेकिन उस वक्त इस झाड़ू के काफी डिमांड थी. उसारी देवी बताती हैं कि बचपन में उन्होंने अपनी दादी से झरगुंडा घास से झाड़ू बनाने की विधि सीखी थी. यह कला धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही थी. लेकिन उसारी देवी ने इसे जीवित रखने का बीड़ा उठाया. उहोने बताया की वे खुद जंगलों में जाकर झरगुंडा घास इकट्ठा करती हैं और उससे झाड़ू बनाती हैं.

उसारी देवी खुद झाड़ू बनाती हैं. उनके द्वारा बनाया गया झाड़ू 20 रुपया का बिकता है. उन्होंने अपनी यह कला आसपास के कई लोगो को सिखा दिया है. कोई महिला इस काम में जुडी हुई है. उन सभी को दादी ने आत्मनिर्भर बना दिया है. झाड़ू बनाने की प्रक्रिया में शामिल होकर कई महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं. उनके बनाए झाड़ू बाजार में ₹20 प्रति पीस के हिसाब से बिकते हैं. उनके मुताबिक सालाना वे लगभग 64 से 70 झाड़ू बनाती हैं जिससे अच्छी आय हो जाती है.

झरगुंडा घास से बने झाड़ू की विशेषता यह है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है. यह झाड़ू पूरी तरह से प्रकिर्तिक है. यह झाड़ू लंबे समय तक चलता है. उसारी देवी के इस प्रयास सेपरंपरागत कला आगे बढ़ाने का मौका भी मिला है. उसारी देवी का कहना है, “यह झाड़ू केवल एक उत्पाद नहीं है, बल्कि हमारी परंपरा और मेहनत का प्रतीक है.

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