सपना पूरा हुआ: पिता का सपना और बेटे का फर्ज

संघर्ष जितना कड़वा होता सफलता उतना ही मीठा होगा. जी हाँ दोस्तों कभी भी आप संघर्ष से पीछे मत हटो क्योकि एक संघर्ष ही ऐसा रास्ता है जिससे बड़े बड़े सपने पुरे किये जाते है. आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जहाँ बिहार के छोटे से गांव में जन्मे ललन कुमार का जीवन संघर्षों से भरा रहा. लेकिन अंत में जो उनको सफलता मिली वो देखने लायक थी. आपको बता दें की लालन कुमार के पिता अक्सर बीमार रहते थे लेकिन ललन कुमार को अक्सर यह कहते ही चाहे जो हो जाये तुम पढ़ लिख कर एक बड़ा अधिकारी बनना . ललन कुमार ने एक आज्ञाकारी बेटे के तरह फर्ज निभाया और सफलता प्राप्त की.

आपको बता दें की ललन कुमार के पिता श्री जगदीश दास एक साधारण किसान थे. वे अपने बच्चों की शिक्षा में कोई कमी नहीं आने दी. हमेशा यह प्रयत्न किया करते की जो भी पढाई लिखाई में खर्चा हो रहा है उसमे कभी कमी नहीं हो. घर की भले ही आर्थिक स्थिति कैसी भी हो लेकिन पढाई हमेशा दुरुस्त थी. जगदीश दास हमेशा अपने बेटे से कहा करते थे, “बेटा, बड़े अधिकारी बनना, ताकि तुम्हारा नाम और हमारा सिर गर्व से ऊंचा हो।” ललन ने अपने पिता के इस सपने को साकार करने का संकल्प लिया.

आर्थिक और सामाजिक सभी तरह की कठिनाइयों के बीच पढ़ाई करते हुए ललन ने कभी हार नहीं मानी. असफ़लत मिलने पर भी वह पढ़ाई में पूरी लगन और मेहनत से जुटे रहे. कई बार उन्हें गांव में पढ़ाई की उचित सुविधाएं नहीं मिल पाईं. परंतु उनके पिता ने कभी हार नहीं मानी और अपनी मेहनत की कमाई का अधिकांश हिस्सा बच्चों की पढ़ाई पर ही खर्च किया. घर की आर्थिक तंगी के बावजूद ललन के पिता ने ललन के सपनों को उड़ान देने का हर संभव प्रयास किया.

आखिरकार एक लम्बी संघर्ष का अंत होने को आया था. ललन ने बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा की तैयारी में सालों की मेहनत लगाई. उन्होंने 67वीं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सीनियर डिप्टी कलेक्टर का पद हासिल किया. वो अब एक आम आदमी से सीधा कलेक्टर बन गए थे. उनकी इस सफलता ने न केवल उनके परिवार को बल्कि पूरे गांव को खुशी से झूमने पर मजबूर कर दिया.

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