कोरोना काल में उन रिश्तों का काला सच भी सामने आने आने लगा है जिनके दम पर लोग दुनिया जीतने की बातें करते हैं. इस महामारी ने लोगों के अंदर इतना डर भर दिया है कि अगर कोरोना संक्रमण के कारण किसी अपने की जान चली जाती है तो कई लोग उनका शव ले जाने तक नहीं आते. ऐसा ही हाल देश की राजधानी दिल्ली का भी है लेकिन इन सबके बीच राकेश कुमार जैसे कुछ लोग भी हैं जिन्होंने ऐसे शवों का संस्कार करना अपना कर्तव्य मान लिया है और वह इसके लिए हर कीमत चुकाने को भी तैयार हैं.
56 साल वर्षीय राकेश कुमार साउथ-ईस्ट दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन थाने में एएसआई के पद पर तैनात हैं। मूलरूप से यूपी के बड़ौत के रहने वाले राकेश कुमार ने 1986 में पुलिस फोर्स ज्वाइन की थी. 36 सालों से पुलिस सेवा में मौजूद राकेश कुमार का इन दिनों ठिकाना पुलिस स्टेशन नहीं बल्कि लोदी रोड स्थित श्मशान घाट है. यह यहां कोरोना संक्रमण के कारण जान गंवाने वालों के शवों का अंतिम संस्कार कराने में मदद कर रहे हैं.
इन शवों में ज़्यादातर ऐसे शव होते हैं जिनका संस्कार करने के लिए कोई परिजन मौजूद नहीं होता. इसे अपना कर्तव्य मानकर राकेश इन शवों का अंतिम संस्कार करते हैं. एएसआई राकेश 13 अप्रैल से लगातार अपना ये कर्तव्य निभा रहे हैं. वह प्रतिदिन सुबह से शाम तक यहां डटे रहते हैं और यहां आने वाले शवों का संस्कार करने में पुजारी और कर्मचारियों की मदद करते हैं.
फर्ज से ऊपर कुछ भी नहीं
राकेश कुमार के बारे में सबसे खास बात यह है कि वह अपने फर्ज को ही अपना धर्म मानते हैं तथा उनके लिए इससे ऊपर कुछ भी नहीं. इसका उदाहरण इन्होंने तब पेश किया जब अपनी ड्यूटी के कारण इन्होंने अपनी बेटी की शादी कुछ समय के लिए टाल दी. हर पिता का ये सपना होता है कि वह अपनी बेटी को लाल जोड़े में सजा हुआ देखे.
ऐसे में बेटी की शादी की उम्र होने के बाद पिता चाहता है कि जल्द से जल्द उसका ये सपना पूरा हो जाए लेकिन जब राकेश कुमार अपने सपने को पूरा करने से बस कुछ कदम ही दूर थे तब उन्होंने यह कहते हुए इसे टाल दिया कि बेटी की शादी तो बाद में भी हो जाएगी, लेकिन अभी यहां इंसानियत निभाने की जरूरत है. उनके इस फैसले में परिवार के लोगों ने भी खुशी खुशी हामी भर दी.