कोरोना संक्रमण के खौफ ने रिस्तों को तो पहले ही तार-तार कर दिया है अब लोगों की संवेदनहीनता और उनका अमानवीय चेहरा भी उजागर हो रहा है। कोरोना संक्रमित की मौत होने पर अपनों द्वारा शव का अंतिम संस्कार नहीं किये जाने के कई किस्से सामने आ चुके हैं लेकिन सुपौल की यह घटना बताती है कि आज मानवता किस स्तर तक गिर चुकी है। 

एक कोरोना मरीज की मौत होने पर श्मशान आए परिजन उसके अधजले शव को छोड़ कर फरार हो गये। लगभग 48 घंटे तक मृतक का अधजला शव चिता पर ही रखा रहा। बाद में सूचना पर नगर परिषद ने जेसीबी की मदद से अधजले शव को दफनवा दिया।

28 अप्रैल को जलाया गया था शव 
वार्ड 14 में मुक्तिधाम है। आसपास रहने वाले मिथिलेश कुमार यादव, शिव कुमार मुखिया सहित अन्य लोगों ने बताया कि 28 अप्रैल बुधवार की शाम करीब 4 बजे एंबुलेंस से एक शव आया था। शव का अंतिम संस्कार करने साथ आये सभी चार लोगों ने पीपीई किट पहन रखी था। लोगों के अनुसार यह कहना मुश्किल है कि चारों परिजन थे या स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी। शव को आग देने के बाद सभी लोग चले गये। 

आसपास के लोगों को लगा कि शव जल जायेगा लेकिन कुछ देर बाद चिता की आग बुझ गई और शव अधजला ही रह गया। इसके बाद तो लोगों में दहशत फैल गया। उनका कहना था कि कुछ पक्षी अधजले शव को नोंच-नोंच कर उसका टुकड़ा इधर-उधर गिरा रहे थे। पास रहने वाले शिवकुमार मुखिया का कहना था कि शव के अधजले होने की सूचना उन्होंने थानाध्यक्ष को दी तो उन्होंने एसडीएम को जानकारी देने को कहा। एसडीएम के कहने पर नगर परिषद ने शुक्रवार दोपहर अधजले शव को दफनाया।

मृतकों की ना तो पूरी हो रही अंतिम इच्छा ना हो रहा कर्मकांड
कोरोना से मरने वाले लोगों की न तो दाह संस्कार की अंतिम इच्छा पूरी हो रही और ना ही पूरे कर्मकांड से उनका अंतिम संस्कार। एक कोरोना मृतक के पुत्र ने बताया कि उनके पिता की अंतिम इच्छा थी कि उनका दाह संस्कार कोसी नदी के किनारे किया जाये। जब उनके शव को नदी किनारे ले जाया गया तो वहां रहने वालों ने शव जलाने से मना कर दिया। तब उनके शव को वापस ला कर गांव के पास ही जलाया गया। 

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