हमारे समाज में किन्नरों को एक अलग ही दृष्टि से देखा जाता है। कई स्थानों पर तो उनके साथ बहुत भेदभाव किया जाता है। हालांकि अब परिस्थितियाँ बदली है और लोग समझने लगे हैं कि किन्नरों को भी अपने मुताबिक जीवन जीने का अधिकार है और वे भी समाज में उतने ही सम्मान के हकदार हैं जितने की हम, इसलिए अब किन्नर भी इसी समाज में रहकर, बेझिझक आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल पड़े हैं।

सूरत की निवासी राजवी (Rajvi Kinnar) भी एक किन्नर हैं, जो गत 3 माह से नमकीन की दुकान चलाया करती हैं। पहले वे पेट्स शॉप चलाती थीं, लेकिन लॉकडाउन में यह दुकान बंद करनी पड़ी थी। राजवी ने इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई की है और वे पढ़ने के साथ ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम भी किया करती थीं।

राजवी जान (Rajvi Kinnar) ने भी एक किन्नर होने की वज़ह से बहुत ही मुश्किलों को झेला था, पर उनके परिवार ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा और हमेशा जीवन में कुछ करने को प्रोत्साहित किया। शायद इसी वज़ह से राजवी भी अपनी एक पहचान बना पाईं। वे अपनी एक नमकीन की दुकान चलाती हैं, जिससे उन्हें हर रोज़ 1500 से 2000 हज़ार रुपए तक की कमाई हो जाती है।


​​​​​​राजवी अपने बारे में बताती हुई कहती हैं कि ‘सूरत के एक ठाकुर परिवार में मेरा जन्म हुआ था और माता-पिता ने मेरा नाम चितेयु ठाकोर रखा। मैं किन्नर के रूप में ही जन्मी थी, परन्तु मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती हैं और तब से आज तक भी मेरा सहारा बनी हैं। वैसे तो मुझ जैसे बच्चों के पैदा होने पर लोग किन्नर समुदाय को सौंप दिया करते हैं, पर मेरी माँ ने ऐसा बिल्कुल नहीं किया।

उन्होंने मेरा पालन पोषण किया।’ फिर वे बताती हैं, ‘मुझे बचपन से ही एक बेटे की तरह पाला गया था। मैं लड़कों के जैसे ही कपड़े भी पहनती थी। दूसरे माता-पिता भी चाहें तो वे भी मुझ जैसे बच्चों का अच्छी प्रकार से पालन पोषण कर सकते हैं, ताकि वह भी आत्मनिर्भर बनकर सामान्य जीवन व्यतीत कर पाएँ।’


वे बताती हैं, ‘किन्नर समाज के लोग गुजरात में बहुत ज़्यादा संख्या में रहा करते हैं, इसलिए मैं अपने घर में रहती थी पर फिर भी 12 वर्ष की आयु में ही सूरत के किन्नर मंडल से जुड़ गई थी। इस मंडल में भी मुझे किन्नर साथियों ने बहुत प्यार दिया। वर्तमान में गुजरात के लगभग 95 % किन्नर मुझे जानते हैं और उन्होंने मेरा सपोर्ट भी किया है।’


राजवी का पालन पोषण एक लड़के की तरह ही किया गया था परंतु उनकी शारीरिक संरचना और विचार कुछ भिन्न थे। फिर उन्होंने 32 वर्ष की आयु में पुरुषों के जैसे कपड़े पहनना छोड़ दिया और एक किन्नर के रूप में जीवन जीना शुरु कर दिया। वे बताती हैं कि बाद में उन्होंने अपना नाम भी ‘चितेयू ठाकोर’ से बदलकर ‘राजवी’ कर लिया।


राजवी ने बताया कि अभी भी हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मेरे किन्नर होने की वज़ह से दुकान में आने से हिचकते हैं, परंतु मुझे ऐसी आशा है कि जैसे-जैसे समय बदलेगा, लोगों की सोच भी बदलेगी। तब लोग किन्नरों के साथ भेदभाव करना बंद कर देंगे और मेरे ग्राहक भी बढ़ जाएंगे। वह आशा करती हैं कि एक दिन उनकी दुकान का नाम रोशन होगा।

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