आज भी जब कभी सुपरमार्केट में रखे अलग-अलग तरह के पापड़ पर नजर पड़ती है तो वही यादें ताजा हो जाती हैं. वहीं आंखें जब लिज्जत पापड़ को देखती हैं तो उनमें विश्वास और महिला सशक्तिकरण का भाव झलकता है
भारत में शायद ही कोई होगा, जिसे स्वादिष्ट लिज्जत पापड़ की जानकारी न हो. लिज्जत पापड़ जितना पॉपुलर है, उतनी ही उम्दा है इसके सफल होने की कहानी
सात सहेलियों और गृहणियों द्वारा शुरू किया गया लिज्जत पापड़ आज सफल और प्रेरक कहानी बन गया है
लिज्जत पापड़ का इतिहास
इसके सफल होने के पीछे की कहानी इतनी दिलचस्प है कि हाल ही में बॉलीवुड के बड़े फिल्म निर्माता आशुतोष गोवारिकर ने लिज्जत पापड़ की सफल कहानी को बड़े पर्दे पर उतारने का निर्णय किया
वह इस फिल्म को प्रोड्यूस करने वाले हैं. ऐसे में इस कहानी को जानना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है
लिज्जत पापड़ का सफर 1959 में मुंबई में रहने वाली जसवंती बेन और उनकी छह सहेलियों ने मिलकर किया था. इसे शुरू करने के पीछे इन सात महिलाओं का मकसद इंडस्ट्री शुरू करना या ज्यादा पैसा कमाना नहीं था. इसके जरिए वो अपने परिवार के खर्च में अपना हाथ बंटाना चाहती थी
चूंकि ये महिलाएं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं इसलिए घर से बाहर जाकर काम करने में भी इन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा
लिहाजा, इन गुजराती महिलाओं ने पापड़ बनाकर बेचने की योजना बनाई, जिसे वह घर में ही रहकर बना सकती थीं
जसवंती जमनादास पोपट ने फैसला किया कि वो और उनके साथ शामिल हुईं पार्वतीबेन रामदास ठोदानी, उजमबेन नरानदास कुण्डलिया, बानुबेन तन्ना, लागुबेन अमृतलाल गोकानी, जयाबेन विठलानी पापड़ बनाने का काम शुरू करेंगी
उनके साथ एक और महिला थी, जिसे पापड़ों को बेचने का जिम्मा सौंपा गया