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बिहार इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में अगले दो साल में 30 हजार करोड़ से अधिक के निवेश आये हैं. इस निवेश से निवेशकों का पैसा तो बनेगा ही, किसानों की भी चांदी होगी. इथेनॉल के ग्रीन फील्ड ग्रेन प्लांट लगने के मक्का उत्पादक किसानों के दिन फिरने जा रहे हैं. वह इसलिए कि इथेनॉल उत्पादन का मुख्य कच्चा माल इकलौता मक्का है. अनुमान के मुताबिक सालाना ढाई हजार करोड़ से अधिक की राशि किसानों के खाते में जायेगी. बिहार में मक्का का उत्पादन 35 लाख टन वार्षिक से अधिक है. उत्पादन में सालाना पांच फीसदी की वृद्धि है.

बिहार में 30 हजार करोड़ का निवेश होना तय

आपको बता दे की बिहार में धान के बाद यही एक ऐसी फसल है, जिसमें सर्वाधिक वृद्धि दर है. बिहार में पहला ग्रीन फील्ड इथेनॉल प्लांट पूर्णिया में हाल में चालू हुआ है. मक्का के अलावा टूटे चावल से इथेनॉल बनाने की अनुमति बिहार में दी गयी है. कच्चे माल की उपलब्धता के हिसाब से मक्का सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला वस्तु है. इस तरह धान बड़ी व्यापारिक फसल के रूप में उभर सकता है. उद्योग विभाग की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में अगले दो वर्षों में बिहार में 30 हजार करोड़ का निवेश होना तय है.

ऐसे मिलेगा लाभ

जानकारों की माने तो एक हजार केएलडी (किलो लीटर पर डे ) के मक्का आधारित प्लांट से इथेनॉल बनाने पर उद्यमी को मक्का खरीद पर कुल सालाना 109 -125 करोड़ खर्च करने होंगे. एक हजार लीटर के प्लांट के लिए 78 हजार टन सालाना मकई की जरूरत पड़ेगी. मकई की सामान्य कीमत 14 रुपये प्रति किलो है. इस दाम पर किसानों की जेब में 109-125 करोड़ जायेंगे, क्योंकि इथेनॉल की मांग बढ़ते ही मक्का की कीमत उसके घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 से भी अधिक होने की उम्मीद है.

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