15 साल वो उम्र होती है जब बच्चे अपने करियर और भविष्य (Career and Future) के बारे में प्लानिग करते हैं और नए सपने (Dreams) बुनते हैं. लक्ष्य तय करते हैं और फिर उसी दिशा में आगे बढ़ना शुरू करते हैं. लेकिन भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बसे श्रीगंगानगर (Shri Ganganagar) की 15 साल की एक मासूम के साथ नियति ने ऐसा क्रूर खेल खेला की वह इस उम्र में अपने सपनों को तिलाजंलि देकर परिवार की जिम्मेदारी निभा रही है. वह अपने जज्बे और हौंसले (Passion and Spirit) के बूते न केवल पिता की चूर्ण की फैक्ट्री की कमान संभाल रही है बल्कि उनके द्वारा लिये गये भारी भरकम कर्ज को भी चुकता करने में जुटी है.
आपको बता दे की श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय के वार्ड नंबर 27 की ब्रह्म कॉलोनी की गली नंबर 4 में रहने वाली 15 वर्षीय बहादुर बेटी रानी के पिता की पिछले साल सितंबर में एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी. पिता की मौत के बाद मानों रानी के परिवार पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा. पिता की मौत का समाचार मिलने के बाद रानी की मां अवसाद में आ गई. इससे पूरे परिवार की जिम्मेदारी रानी पर आ गई. एक तरफ अवसाद में गई मां को संभालना था तो दूसरी तरफ अपने से 9 साल छोटे भाई की पढ़ाई को जारी रखना था। इन दोनों चुनौतियां से पा पाना रानी के लिये एक बड़ा चैलेंज था.
पिता के सर था करीब 20 लाख रूपये का कर्ज : बताया जा रहा है की इन मुश्किल हालात में भी रानी ने हार नहीं मानी और हौंसले का परिचय देते हुए पहले अवसाद ग्रस्त मां को संभाला. इसके साथ ही छोटे भाई की पढ़ाई भी जारी रखने की मशक्कत जारी रखी. इतना ही नहीं पिता की मौत के कुछ दिनों बाद पता चला कि उन्होंने बैंक सहित अन्य लोगों से करीब 19 लाख रुपये का कर्जा ले रखा था. उनको कर्ज देने वाले लोग अब रकम का तकाजा करने घर पर आने लगे. वहीं बैंक के भी नोटिस मिलने लग गये.
खास बात यह है की पिता की मौत के बाद उनकी फैक्ट्री बंद हो चुकी थी. अब रानी पर पिता का कर्ज चुकाने की तीसरी बड़ी जिम्मेदारी भी आ गई थी. ऐसे में इस बहादुर बेटी ने अपने पिता की इमली का चूर्ण और गोलियां बनाने वाली बंद पड़ी फैक्ट्री को फिर से शुरू करने का फैसला लिया. स्थानीय पार्षद सुरेन्द्र स्वामी सहित अन्य लोगों की मदद से पिता की बंद पड़ी फैक्ट्री को फिर से शुरू किया. रानी ने छोटे भाई का नजदीकी स्कूल में दाखिल करवाया.
अब रानी दिनभर पिता की फैक्ट्री में इमली के चूर्ण और गोलियां बनाती है. जिलेभर में 4 लोगों की मदद से उसकी सप्लाई कर रही है. पिता की बंद पड़ी फैक्ट्री को शुरू करने के बाद रानी ने पिता द्वारा लिये गये कर्जे में से कुछ रकम चुकता भी कर दी है. रानी का कहना है कि अब वह पिता की बंद पड़ी फैक्ट्री को शुरू कर खुश है. इस बिजनेस को वह अब और आगे बढ़ाएगी. अपने छोटे भाई को पढ़ा लिखा कर एक काबिल इंसान बनाएगी.