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भारत सरकार का प्रतिष्ठित राष्ट्रीय खाद्य तकनीक उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान बिहार में स्थापित होगा। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के तहत संचालित यह डीम्ड यूनिवर्सिटी है। भारत सरकार के आग्रह पर बिहार सरकार ने पटना से मुजफ्फरपुर के बीच इसके लिए 100 एकड़ के भूखंड की तलाश शुरू कर दी है। 2022 में इसकी शुरुआत की उम्मीद जताई जा रही है। राष्ट्रीय खाद्य तकनीक उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान की स्थापना के लिए केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री पशुपति कुमार पारस और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। बिहार का प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य तकनीक उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान (निफटेम) देश में तीसरा होगा।

जानकारी के लिए बता दे की इससे पहले केवल दो संस्थान हरियाणा के सोनीपत और तमिलनाडु के तंजावुर में हैं। पहली बार पूर्वी भारत में इस तरह के संस्थान की रूपरेखा तैयार की गई है। इससे बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा के निवासियों को काफी फायदा होगा। आगामी तीन जनवरी को केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय के उद्घाटन के मौके पर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भी कैंप कार्यालय शुरू करने की घोषणा की जा सकती है।

नए-नए खाद्य उत्पादों पर होगा शोध बताया जा रहा है की प्रस्तावित संस्थान में नए-नए खाद्य उत्पादों को विकसित करने पर शोध होगा। इसके अलावा यहां खाद्य प्रसंस्करण के लिए उन्नत तकनीक का भी विकास किया जाएगा। जिससे कम लागत में कृषि और वानस्पतिक उत्पादों को गुणवत्तापूर्ण भोजन में बदला जा सकेगा।

टेक्नोक्रेट से लेकर उद्यमी तक होंगे तैयार आपको बता दे की राष्ट्रीय खाद्य तकनीक उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान (निफटेम) में टेक्नोक्रेट से लेकर उद्यमी तक तैयार करने के पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे। यहां खाद्य प्रसंस्करण तकनीक में बीटेक, एमटेक, एमबीए और पीएचडी की पढ़ाई होगी। उद्ममिता और तकनीक के क्षेत्र में करियर बनाने वाले युवाओं को काफी मदद मिलेगी।


मखाना, लीची, केला, सिंघारा की नई संभावना जगेगी मखाना, लीची, केला और सिंघारा जैसे बिहार की खास पहचान वाले प्राकृतिक उत्पादों से नए-नए भोज्य पदार्थ विकसित कर उन्हें अर्थव्यवस्था के नए चक्र के रूप में विकसित करने पर काफी कम काम हुआ है। नया संस्थान इस कमी को पूरा करेगा। इससे बिहार के फसलों, फलों और वनस्पतियों पर आधारित नए उत्पादों के विकास की संभावना जगेगी। वैश्विक गुणवत्ता मानकों के आधार पर इन्हें तैयार करने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ेगी। इससे किसानों को काफी लाभ होगा।

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