फॉरेस्ट क्रिएटर्स’ की टीम ने 12 राज्यों में 55 मियावाकी जंगल तैयार कर चुकी है।

इनमें से कई जंगल छोटी जगह में है तो कई जंगल बहुत बड़ी जगह में है। उन्होंने सभी प्रोजेक्ट को अलग-अलग लोगों के साथ मिलकर किया है।

कोई इंडस्ट्रियल कंपनी के लिए है, वही बहुत सारे प्रोजेक्ट उन्होंने बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीएसआर की सहायता से किए हैं।

हाल ही में उन्होंने उमरगांव में एक और नए प्रोजेक्ट को पूरा किया है। उस मियावाकी जंगल का नाम उन्होंने रखा है “पुलवामा शहीद वन”। यह वन पुलवामा में शहीद हुए सैनिकों की याद में लगाया गया है।

नायर ने बताया कि 40 शहीदों के नाम पर उन्होंने 40000 पेड़ लगाए हैं। अर्थात् एक सैनिक की याद में 1000 पेड़।

सभी पेङों को अलग-अलग पैच में लगाया गया है। कुछ वक्त पहले हीं उन्होंने इस प्रोजेक्ट को पूरा किया है। अब वह नए प्रोजेक्ट की तैयारी में है।

नायर और जैन द्वारा लगाए गए पौधों के पेड़ बनने की सफलता दर 99% है।

इसकी वजह यह है कि वह सिर्फ पौधे लगाते हीं नहीं हैं बल्कि जंगलों को 3 वर्ष तक बच्चे की तरह अच्छी तरह से देखभाल भी करते हैं।

जैन के अनुसार उनकी टीम बहुत ही सिस्टमैटिक तरीके से कार्य करती है, जो इस प्रकार है:-

• सबसे पहले जगह का चुनाव किया जाता है तथा पता किया जाता है कि वह जगह पौधे लगाने लायक है या नहीं है।

• यदि बंजर भूमि है तो वहां पर खाद, कृषि अपशिष्ट और केंचुए जैसे सूक्ष्म जीव डालकर उपजाऊ बनाया जाता है।

• उसके बाद वह उसे उस क्षेत्र के वनस्पति को जानते समझते हैं। अर्थात् वह देखते हैं कि कौन सा स्थानीय पेड़-पौधा लगाया जा सकता है। मियावाकी जंगल तभी सफल है जब क्षेत्र के स्थानीय पेड़-पौधे लगाए जाएं।

नायर ने बताया कि 3 वर्षों के बाद इन पेड़ों को किसी भी प्रकार का देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती है या अपने आवश्यकता की चीजें खुद हीं पूरी कर लेते हैं।

मियावाकी तकनीकी की सहायता से लगाए गए 1 शहर में काफी लाभदायक सिद्ध हो रहे हैं। उदाहरण के लिए मुंबई में जगह की बेहद कमी होने की वजह से अगर वहां भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों पर इस वन को लगाया जाए तो शहर को प्रकृति के बहुत करीब लाया जा सकता है।

वहीं दीपेन जैन ने बहुत ही स्पष्ट भाषा में कहा है कि मियावाकी जंगल हमारे प्राकृतिक जंगल का कोई रिप्लेसमेंट नहीं है।

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