बिहार के मधुबनी जिले का मछधी गांव। अब यहां की सड़कों पर गंदगी नहीं दिखती। सुबह-शाम खाना बनाते समय घरों से निकलने वाला धुआं नहीं दिखता। यह बदलाव आया है डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा व कृषि विज्ञान केंद्र, सुखेत के प्रयास से। यहां छह महीने पहले कचरा और गोबर के बदले रसोई गैस सिलेंडर भराने के लिए नकद राशि देने की अनूठी योजना शुरू होने के बाद ग्रामीणों का सोच और गांव का नजारा बदल गया है। ग्रामीणों ने कचरे व सफाई की कीमत समझी है। पर्यावरण का महत्व जाना है।

कृषि विज्ञान केंद्र का विचार

घर से निकलने वाले कचरे व धुएं से फैलने वाले प्रदूषण को देखते हुए डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के कुलपति ने इस पर काम करने की योजना बनाई। जैविक खाद बनाने के काम से जुड़े मृदा विज्ञानी डा. शंकर झा को इसकी जिम्मेदारी दी। उन्होंने कचरा व गोबर के बदले ग्रामीणों को रसोई गैस सिलेंडर देने की योजना पर काम शुरू किया। इसका पहला प्रयोग मधुबनी में करने का निर्णय लिया गया। यहां के झंझारपुर प्रखंड स्थित कृषि विज्ञान केंद्र्र, सुखेत ने चार फरवरी को इस योजना का शुभारंभ मछधी गांव में किया। यहां के 100 किसान परिवारों को जोडऩे की योजना बनाई गई। अभी 44 परिवार जुड़े हैं। इन्हेंं सूखा और गीला कचरा रखने के लिए अलग-अलग डस्टबिन दी गई है। ये प्रतिदिन 20 किलो गोबर और घर से निकला कचरा देते हैं। रोजाना दो कर्मी ठेले पर इसका उठाव कर गांव के बाहर बने संग्रहण केंद्र पर जमा करते हैं।

उपले बनाने और लकड़ी जुटाने के झंझट से मिली मुक्ति

ग्रामीण मुन्नी देवी व रेखा देवी कहती हैं कि महंगाई के चलते रसोई गैस सिलेंडर नहीं भरा पा रही थीं। लकड़ी और उपले जलाकर खाना बनाना पड़ता था। इस योजना से जुडऩे के बाद तीन बार सिलेंडर भराने के लिए रकम मिल चुकी है। उपले बनाने, लकड़ी जुटाने के झंझट के अलावा धुएं से मुक्ति मिली है। पहले बरसात में गोबर पानी के साथ बहकर बर्बाद हो जाता था। चारों ओर गंदगी फैलती थी। अब उसका उपयोग हो रहा है।

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