भूखे पेट भजन नहीं होता और बिना पैसे के पढ़ाई नहीं होती। यह बात हमारे गाँव-देहात में अक्सर सुनने को मिलती है। पेट की भूख को मिटाना ज्यादा ज़रूरी होता है, इसलिए कम उम्र में ही गरीब छात्र पढ़ाई छोड़ कर मज़दूर बन जाते हैं। लेकिन जो गरीब युवा अपनी परिस्थितियों को बदलना चाहते हैं, उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें पेट के लिए मज़दूरी भी करनी पड़ती है और काम से समय निकाल कर पढ़ाई भी करनी पड़ती है।

कुछ ऐसी ही कहानी है राजस्थान से दिल्ली आए रामजल मीणा की। वह जहाँ गार्ड की नौकरी करते हैं, अब वहीं के छात्र बनने जा रहे हैं।

रामजल मीणा जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी) में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं। इस साल उन्होंने जेएनयू से रशियन भाषा में बैचलर करने के लिए एन्ट्रेंस एग्जाम दिया था। एन्ट्रेंस एग्जाम का रिजल्ट आ गया है और वह पास हो गए हैं। अब वह जेएनयू में एडमिशन ले कर वहाँ के छात्र बनने वाले हैं।

रामजल मीणा की कहानी काफ़ी दिलचस्प है। उनसे बातचीत के दौरान वे बताते हैं, “वह साल 2003 था, जब सिर्फ 18 साल की उम्र में मेरी शादी कर दी गयी थी। उस समय मैंने बीएससी में दाखिला करवाया था, लेकिन ब्याह के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पढ़ाई छोड़ने के दो कारण थे। एक, मां-बाप बूढ़े हो गए थे और अब वे लोग मुझे कमाकर खिला नहीं सकते थे। दूसरा, मेरी पत्नी की जिम्मेदारी भी मेरे सिर थी।”

बीता समय याद कर रामजल का गला भर जाता है और आवाज़ भारी होने लगती है। हो भी क्यों न। रामजल पढ़ाई पूरी कर यूपीएससी की परीक्षा पास कर अफसर बनना चाहते थे। मगर हालात ने उन्हें बहुत छोटी उम्र में ही काम ढूँढने के लिए मजबूर कर दिया था।

लगातार 2 साल तक इधर-उधर मज़दूरी करने के बाद साल 2005 में रामजल सिर्फ़ तीन हज़ार की तनख्वाह पर सिक्योरिटी गार्ड भर्ती हो गए और अपने परिवार का पेट पालने लगे।

लेकिन रामजल के मन से पढ़ाई करने की लगन नहीं गयी। वह कम पैसे में पुरानी किताबें खरीदते और पढ़ाई करते। ड्यूटी के दौरान पढ़ने के कारण उन्हें उनके अफसरों से डांट-फटकार भी लगती।

रामजल ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से ओपन लर्निंग के फॉर्म भर ग्रैजुएशन भी पूरी की। लेकिन उन्हें फ़िर भी संतुष्टि नहीं हुई।

वह बताते हैं, “मैंने लटक-फटककर राजस्थान यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन तो कर ली, मगर मेरा मन नहीं भरा। मैं रेग्युलर यूनिवर्सिटी जाकर पढ़ना चाहता था। खैर, मेरा रेग्युलर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई का सपना पूरा तो होना ही था, लेकिन इसमें 16 साल का समय लग जाएगा, यह पता नहीं था।”

वह बताते हैं, “मेरे तीन बच्चे हैं। मेरी पत्नी गृहिणी हैं। मैं भी घर के काम में उनका हाथ बंटाता हूँ। तीनों बच्चों की पढ़ाई पर भी ध्यान देता हूँ। हम जेएनयू के सामने वाले गाँव मुनिरका में एक कमरे में रहते हैं। मुझे अपनी पढ़ाई घर और नौकरी के बीच ही करनी थी। शुरुआत में थोड़ी मुश्किल भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे मैंने समय निकालना सीख लिया।”

रामजल की तनख्वाह 15 हज़ार रुपये प्रति महीना है। पीएफ वगैरह कटने के बाद उन्हें करीब 13 हज़ार रुपये प्रति माह मिलते हैं, जिसमें 5000 रुपये कमरे का किराया उन्हें चुकाना पड़ता है।

अपनी आर्थिक स्थिति पर रामजल कहते हैं, “दिल्ली ऐसा शहर है कि जितना एक गरीब को देता है, उतना वापस ले भी लेता है। मुझे मिलने वाले 13 हज़ार में पांच हज़ार तो कमरे के भाड़े में ही चले जाते हैं। उसके बाद तीनों बच्चों की पढ़ाई, उनके लिए अच्छे खाने-पानी में लगभग सब खर्च कर देता हूँ। मेरी पत्नी और मैं बिल्कुल मुट्ठी बंद करके पैसे खर्च करते हैं। खैर, मेहनत पर मुझे यकीन है, इसलिए ये तंगी वाले दिन भी पलटेंगे।”

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