डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को हुआ था. पश्चिम बंगाल के कोलकाता में जन्म लेने वाले मुखर्जी में महानता के सभी गुण विद्यमान थे. ऐसा कहा जाए कि उन्हें ये सारे गुण विरासत में मिले थे, तो गलत नहीं होगा. क्योंकि उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे. ऐसे में पिता की दी हुई दीक्षा का असर श्यामा प्रसाद के जीवन में दिखा.
श्यामा प्रसाद की 120वीं जयंती
भारतीय जनसंघ के संस्थापक और इसके पहले अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज 120वीं जयंती है. डॉक्टर मुखर्जी जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 के मुखर विरोधी थे. उनका सपना था आजाद कश्मीर, जिसे अब जाकर भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार ने साकार किया है.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर पूरी तरह से भारत का हिस्सा बने, साथ ही वहां देश के अन्य राज्यों जैसे हालात और माहौल बन सके. जम्मू-कश्मीर में भी सभी राज्यों की तरह भारत का कानून लागू हो. इसके लिए उन्होंने आवाज भी बुलंद की थी. उनका मानना था कि एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.
जब नेहरू ने श्यामा से मांगी माफी
एक दिलचस्प किस्सा बताया जाता है कि ‘एक बार श्यामा प्रसाद मुखर्जी जब जवाहरलाल नेहरू की पहली सरकार में मंत्री थे. उस वक्त नेहरू-लियाकत पैक्ट हुआ, तो मुखर्जी और बंगाल के एक अन्य मंत्री ने इस्तीफा दे दिया. यहीं से जनसंघ की शुरुआत हुई. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की नींव रखी. उस वक्त दिल्ली में नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ के बीच कांटे की टक्कर चल रही थी. इसी दरमियान श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संसद में बोलते हुए कांग्रेस पर ये आरोप लगाया कि वो वाइन और मनी का इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिए कर रही है.’
ये बात जवाहरलाल नेहरू को बुरी लग गई. ऐसे में उन्होंने मुखर्जी के इस आरोप का जबरदस्त तरीके से विरोध किया. दरअसल, मुद्दा उस वक्त गरमा गया जब नेहरू ने श्यामा प्रसाद की बात को वाइन और मनी की जगह वाइन और वुमेन समझ लिया. उन्होंने जोरदार विरोध किया और ये तक कह दिया कि मुखर्जी साहब ने आधिकारिक रिकॉर्ड में ये कहा है, हालांकि थोड़ी देर में ही नेहरू को अपनी गलती का एहसास हो गया. उसी वक्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी से जवाहरलाल नेहरू ने भरे सदन में खड़े होकर माफी मांगी.
जब नेहरू ने श्यामा प्रसाद से माफी मांगी, तो जवाब में मुखर्जी ने कहा कि माफी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि मैं कोई गलतबयानी नहीं करूंगा.
33 साल की उम्र में बने कुलपति
कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी वर्ष 1926 में सीनेट के सदस्य बन गए. साल 1927 में उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास कर ली. इतना ही नहीं, महज 33 वर्ष की आयु में वो कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए थे. इसके 4 वर्ष बाद ही वो कलकत्ता विधानसभा पहुंच गए.
देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपनी अंतरिम सरकार में मंत्री बनाया था. हालांकि ये बात और है कि उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा. उन्होंने नेहरू पर तुष्टिकरण का आरोप लगा दिया और खुद को उनकी सरकार से अलग कर लिया.
उनकी ये चाहत थी कि कश्मीर में जाने के लिए किसी को अनुमति लेने की जरूरत ना पड़े. उन्होंने खुद इसकी शुरुआत भी की. 8 मई 1953 में को वो खुद बिना इजाजत के दिल्ली से कश्मीर के लिए निकल गए. 10 मई को उन्होंने जालंधर से हुंकार भरते हुए ये भी कहा था कि ‘ये हमारा मूलभूत अधिकार होना चाहिए कि हम बिना किसी रोक-टोक और बिना अनुमति के जम्मू-कश्मीर जा सके.’