यह एक बहुत वाजिब सवाल है। आपको क्या लगता है? इसका जवाब कॉमेंट बॉक्स में दीजिएगा। …मगर मुझे लगता है हमारा समाज भ्रष्टाचार को गलत नहीं, अवसर मानता है। अपवाद छोड़ दें, तो जाने अंजाने में हर कोई इस अवसर के फ़िराक में है। जिसे यह अवसर मिलता है, वो इसे सिस्टम की मज़बूरी बताता है और जिसे नहीं मिलता, वो किसी तरह इस सिस्टम का हिस्सा बनना चाहता है।

समाज में कोई अंतरजातीय विवाह कर ले तो पूरा समाज बिना बुलाए उसके दुरा पर जमा हो जाता है और सामाजिक बहिष्कार कर देता है। तरह – तरह के कुतर्क गढ़े जाते हैं और समाज के विद्वान लोग तमाशा देखते हुए समाज को अपना अपना मौन सहमति दे देते हैं।

मगर दूसरे तरफ, जब कोई उसी समाज में से कोई भ्रष्टाचार करता है या घुशखोरी करता है तो वही समाज उसको सर आंखों पर बैठा लेता है।

कभी किसी सरकारी दफ्तर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा के देखिएगा, बवाल होने पर लोग जुटेंगे, मामला सुनेंगे और फिर लोग कहेंगे काम करवाना है तो पैसा देना ही होगा। यहां ऐसा ही होता है, ज्यादा नेता मत बनो, थूरा जाओगे।

दूसरे राज्य में स्थिति अलग हो सकती है मगर बिहार में घूसखोरी खुलेआम होती है और जिसको भ्रष्टाचार करने का अवसर मिला है वो इसे हक से करते हैं।

किसी को पता चले कि फलनवां के बेटा सरकारी पोस्ट पर रहते हुए टेबल के नीचे से खूब कमाई कर रहा है – तो लोग इसका शिकायत नहीं करते, समाज उसका बहिष्कार नहीं करता, कोई उसे धिक्कारता नहीं है, बल्कि लोग अपने बेटी का रिश्ता लेकर उसके पास चले जाते हैं, उसके लिए दहेज का रेट भी बढ़ जाता है, समाज में उसकी इज़्ज़त बढ़ जाती है और लोग उसके प्रगति का उदाहरण अपने बच्चों को देते हैं।

यही सब कारण है कि बिहार में भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं बनता, नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगे या वो जेल में जाएं, उनका वोट इसके कारण कभी कम नहीं होता, क्योंकि हमारा समाज भ्रष्टाचार को अवसर मानता है कुकर्म नहीं। इसी समाज से सिस्टम चलता है, यही से कोई नेता बनता है।

ऐसा नहीं है कि ईमानदार लोगों की कमी है मगर बैमानों की पकड़ इतनी मजबूत हो चुकी है कि वे अपने हिसाब से समाज को संचालित करते हैं।

अगर कोई उसको चुनौती देने का कोशिश भी करता है तो समाज से समर्थित यह सिस्टम उसका लिंचिंग कर देते हैं।

समस्या के स्थाई समाधान के लिए समस्या के मूल जड़ को उखाड़ फेकना होगा। सबकी यह शिकायत है कि पूरा सिस्टम भ्रष्ट है मगर इसके खात्मे के लिए सबसे सबसे पहले भ्रष्टाचार को लेकर ये मानसिकता बदलनी होगी।

– अविनाश कुमार, संपादक

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